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हरिहर

हरिहर

हर हेतु होते हैं हरि ,
हरि हेतु होते हर हैं ।
अर्द्धनारीश्वर रूप में ,
शिव-शंभु नारी नर हैं ।।
दोनों मानते दूजे श्रेष्ठ ,
दोनों दूजे के आराध्य ।
दोनों हैं दूजे के साधक ,
दोनों दूजे के हैं साध्य ।।
दोनों हुए हैं विराजित ,
जहॅं खुला कृपालु नेत्र ।
जहॅं बरसे इनकी महिमा ,
वह कहलाए हरिहर क्षेत्र ।।
हरिहर मेला विश्वविख्यात ,
एशिया मेला है सुप्रसिद्ध ।
साधु महात्मा हैं विराजित ,
योगी मुनि गुणीजन सिद्ध ।।
स अरण्य अपभ्रंश हुआ ,
स अरण्य हुआ है सारण ।
सारण मंडल हरिहर क्षेत्र ,
गज रक्षा ग्राह का तारण ।।
सोनपुर मेला से विख्यात ,
एक माह का होता है मेला ।
छोटे बड़े हर कुछ मिलता ,
मनोरंजन संग मिले खेला ।।
कार्तिक पूर्णिमा है आरंभ ,
मार्गशीर्ष पूर्णिमा ही अंत ।
मेले का समापन है होता ,
रह जाते वहाॅं हैं साधु संत ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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