स्वाभिमान
स्वाभिमान के नाम पर अभिमान पाल रहे हैं लोग,स्वार्थ की खातिर अक्सर झूठ बोल रहे हैं लोग।
झूठी शान की खातिर कर्ज में डूब रहे हैं लोग,
आधुनिकता के रंग में बेखौफ रंग रहे हैं लोग ।
स्वार्थ सिद्धि के लिए चापलूस बन रहे हैं लोग,
वक्त पड़ने पर बहू-बेटियों को परोस रहे हैं लोग।
धन की खातिर ना जाने क्यों इतने गिर रहे हैं लोग,
धन यहीं रह जाएगा क्यों नहीं समझ रहे हैं लोग।
सुरेन्द कुमार रंजन
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