हमदर्दी का वहम ढह गया।
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
हमदर्दी का वहम ढह गया।
घाव हरा-का-हरा रह गया।
घायल जाते -जाते जग के
कानों में कुछ बात कह गया,
-- 'बेरहमों के इस सराय में
मरहम का ही कहत रह गया।'
तानाशाही के दरिया में,
लोकतंत्र का ताज बह गया।
हर सियासी इंतखाब में
झूठों का सरदार लह गया।
(कहत =अकाल)
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com