सांच बात कहला पर,
केहू पतियाते नइखे।
कतनो करत बानी,
झूठ बोलल जाते नइखे।।
काका घरे खाना खा के,
पेट खुब अघाइल बा।
आपन माई कहत बाड़ी,
बबुआ भुखाइल बा।।
कइसे समझाईं माँ के,
एक दम से बुझाते नइखे।
सांच बात कहला पर,
केहू पतियाते नइखे।।
काका घर से माई के,
कुछ दिन से झगड़ा बा।
छोटी छोटी बात खातिर,
दूनों घर में रगड़ा बा।।
माई सोचत बाड़ी,
उ सब कइसे खियाई।
हम सोचत बानी,
माई सांच कइसे पतियाई।।
साखी गोआही एह में,
केहू से दिहल जाते नइखे।
सांच बात कहला पर,
केहू पतियाते नइखे।।
अपना घर के झगड़ा,
अपने में फरियाला।
कुछ दिन खातिर सब में,
खान पान छुट जाला।।
लोग मजा लेला खुब,
इ केहू का बुझाते नइखे।
सांच बात कहला पर,
केहू पतियाते नइखे।।
जय प्रकाश कुवंरहमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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