ये राह कहाँ ले जाए?
(अवध किशोर मिश्र)नीति अनीति के द्वंद्व में, नित
नीति कुचला जाए.
दुराचारी फलता रहे-सज्जन सुखता जाए.
सत्य मार्ग चल हरिश्चन्द्र- सा राजा भी बिक जाए.
राही सोचे मोड़ पे ये राह कहाँ ले जाए? '
गाँव जगाकर शहर को, चला युवक अंजान.
जाल बिछाए काल है, ना समझ सका नादान.
सदाचार की नाव ये- डूबे या उतराय?
राही सोचे मोड़ पे ये राह कहाँ ले जाए?
रीत न बदले साधु की, ठोकर खाए हजार.
लोभ, द्वेष, आतंक से पथ बदले संसार..
चंदन कटे कुठार से, तब भी गंध न जाए.
राही सोचे मोड़ पे ये राह कहाँ ले जाए?
दयानंद को विष मिले गाँधी गोली खाए
युग पूजे धनवान को साधु ठोकर खाए
समाज न बदला आज भी,
न दीखता कोई उपाय
राही सोचे मोड़ पे ये राह कहाँ ले जाए?
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