एक एक दिन उमर के,
जैसे जैसे बढ़ल जात बा।
जिनिगी के असली माजा
अबगे बुझात बा।।
काला से सफेद हो के,
बाल सब झड़ गइल।
चमकत चिकन चमड़ा,
पुरा देह के सिकुड़ गइल।।
लाठी नियर सोझ देह,
धनुही नियर झुक गइल।
बचपन जवानी बिता के,
देहिया अब बुढ़ भइल।।
इच्छा बुढ़ाइल ना,
मन मुरझाइल ना,
चलल फिरल मुश्किल बा,
उठलो ना जात बा।
जिनिगी के असली माजा,
अबगे बुझात बा।।
सबकेहू कहे बाबा,
हॅस के बिताई दिन।
दरद हॅसी छिन लेहलस,
झूठे हॅसलो ना जात बा।।
जिनिगी के असली माजा,
अबगे बुझात बा।।
जय प्रकाश कुवंरहमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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