था जिसका इंतजार मुझे ,
मुॅंह फेर वह यों चला गया ।आज महसूस हुआ मुझे ,
जैसे मैं उसी से छला गया ।।
मुद्दत से इंतजार उसका ,
एक बार मेरे सामने आए ।
था तो मेरा बहुत परिचित ,
अजनबी मुझे क्यों बनाए ।।
चाहा जिसको दिल से मैंने ,
उसने मुझको न चाहा है ।
मैंने तो केवल प्यार किया ,
दिल पे पर्वत क्यों ढाहा है ।।
एक बार मेरे सामने आओ ,
नजरों से नजरें तो मिलाओ ।
रहो बेखौफ बेवफा ही सही ,
किंतु मुझको न तड़पाओ ।।
बैठे पड़े हो तुम दिल में मेरे ,
दिल से तुझे निकालूॅं कैसे !
निकालने से निकलता नहीं ,
दूजे को दिल में पालूॅं कैसे !!
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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