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आफत की पुड़िया

आफत की पुड़िया

सुरेन्द्र कुमार रंजन

नई नवेली दुल्हन,
जीवन की बन गई उलझन ।
बात किसी की सुनती नहीं,
काम कभी कुछ करती नहीं।
फैशन में रहती चूर सदा,
सबको करती मजबूर सदा।
नखरें दिखाती है ज्यादा,
सबको सताती है सदा ।
फरमाईश उसकी रोज नई,
जीने के उसके ढंग कई ।
फैशन की रंग में ढली हुई,
हर पल वो रहती छुई - मुई ।
ना बच्चों का ध्यान रहे,
ना रहे ख्याल पति का ।
सास - ससुर को नौकर समझे,
हर बात पर उनसे उलझे।
जो भी अच्छी बात बताए,
अपनी शामत आप बुलाए।
ऐसी प्यारी दुल्हन से तो,
बचकर ही रहना ।
इससे तो अच्छा है प्यारे,
क्वांरे ही मरना ।


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