राज अमीरी का
सुरेन्द्र कुमार रंजनअपनी धुन में खोया मैं ,
यूं ही चला जा रहा था।
सहसा किसी ने टक्कर मारी,
बढ़ती हुई पांव मेरी ठहरी।
नजरें उठा जब देखा तो,
सामने मेरा मित्र खडा था।
देखकर अप-टू-डेट उसे मैं,
हतप्रभ - सा रह गया मैं।
सहसा संभल तपाक् से बोला,
भाई कैसे हुई काया पलट तेरी ।
बड़े गर्व से उसने फिर बोला ,
कि जब मैं हुआ बी ए फेलि।
तभी किस्मत ने दिखलाया खेल,
बनी अपनी पहचान की सरकार।
मंत्रियों को कमीशन पहुँचाने लगा,
एक का दो और दो का चार बनाने लगा।
हेरा फेरी कर लाखों रूपया,
बिना पूंजी के मैं कमाने लगा,
बस यही राज है मेरी अमीरी का।
अब तू बता कि तेरा क्या हाल है?
क्यूँ तू इतना फटेहाल है?
सुन उसकी बात मैं थोड़ा सकुचाया,
मन ही मन मैं जरा घबराया।
सहसा अपनी घबराहट को छिपा,
दबी हुई जुबान से मैं कुछ यूं बोला।
क्या सुनाऊं दास्तां अपनी गरीबी का,
एक निजी विद्यालय का मैं शिक्षक हूं
दो माह पढ़ाता हूँ तब जाकर कहीं,
मुश्किल में एक महीने का वेतन पाता हूं।
तंग हाल जिंदगी है मेरी,
मर - मर कर जीवन जी रहा हूं।
सपरिवार बेबसी के आंसू को,घूंट - घूंट कर पी रहा हूं।
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