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इस तरह बात अकारण न उछाला जाए।

इस तरह बात अकारण न उछाला जाए।

डॉ रामकृष्ण मिश्र
इस तरह बात अकारण न उछाला जाए।
हो सके तो तनिक आवेग सँभाला जाए।।
खूब फैलाना अँधेरा नहीं उचित होता।
कहीं तो छेद हो जिससे कि उजाला जाए।।
कोप का ताप अपने आप उच्च होता है।
लोक हित मे न इसे और उजाला जाए ‌।।
काम की बात अगर हो तो अभी कर लेते।
हासिये पर न इसे चाह कर डाला जाए।।
आग तो आग है अपने या पराये से लगी ।
राख करती है इसे मन से निकाला जाए।।
सब तो अपने हैं यहाँ कौन पराया लगता।
एक मालिक है इसे खूब खँघाला जाए। ।

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