Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

बेतुकी आक्रामकता, अनर्गल बहस से कांग्रेस का भला नहीं:-डॉक्टर विवेकानंद मिश्र

बेतुकी आक्रामकता, अनर्गल बहस से कांग्रेस का भला नहीं:-डॉक्टर विवेकानंद मिश्र

कांग्रेस के इतिहास में वर्तमान समय कांग्रेस को बचाने के लिए सबसे कीमती और महत्वपूर्ण समय है , महत्त्वपूर्ण क्षण है। जनता ने प्रतिपक्ष के लिए जनादेश भी दिया है। किंतु पार्टी न तो संगठन को मजबूत एवं गतिशील बनाने की दिशा में कोई महत्वपूर्ण ठोस कदम उठा पा रही है और न ही सदन में अपनी सकारात्मक भूमिका का एहसास करा रही है। केवल विपक्षियों के द्वारा नारेबाजी, हो-हल्ले, हुड़दंग के साथ संसद को ठप करने की मंशा की सदन के अंदर और बाहर आम जनों में भी नकारात्मक छाप पड़ी रही है। प्रतिपक्ष द्वारा कार्य बाधित करने पर सभी की तीव्र प्रतिक्रिया के साथ चिंता व्यक्त की जा रही है। और यह भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।
यह कथन है विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉक्टर विवेकानंद मिश्र का। समर्पित कांग्रेसी डा मिश्र देश के हर मुद्दे पर सदैव बेबाक टिप्पणी करने बालो में प्रमुख हैं । प्रेस वार्ता में पूछे गए पार्टी के मामलों के अलावे संसद बाधित होने से संदर्भित सभी प्रश्नों का बड़े ही स्पष्ट शब्दों में जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि जहां एक और आज सत्ता पक्ष के सभी घटक एक जुट हैं वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों की राय अंदर और बाहर उठाए गए कई मुद्दों पर अलग-अलग है। ऐसे में विपक्षी एकता की बात भी हास्यास्पद सी लगती है। यह आरोप भी आम जनों द्वारा कांग्रेस नेतृत्व पर ही लगाया जा रहा है। तो आखिर विरोधी दलों की एकता की जिम्मेवारी भी किस पर है? लोग पूछते हैं कि क्या विरोधी दलों को एकजुट करने की जवाबदेही भी सत्ता पक्ष की ही है? तो ऐसे पूछे गए प्रश्नों पर उनका निरुत्तर हो जाना स्वाभाविक है। हालांकि कांग्रेस ने आरंभ से ही पार्टी में कई बड़े उलट- पलट और परिवर्तन देखे हैं और अपना अस्तित्व बचाने के साथ ही दल को जीवंत रखा है परंतु इधर काफी वर्षों में जिस तरह सिर्फ नेताओं द्वारा सत्ता प्राप्ति के उतावलेपन में कांग्रेस के हर बुरे दिनों में खिलाफत करने वाले व्यक्ति तथा स्थानीय पार्टी वालों के हाथों में कांग्रेस की बागडोर थमाकर कांग्रेस क्या और कैसे कुछ प्राप्त करना चाहती है, वही जाने। पार्टी ने अपनी सामाजिक एवं संगठनात्मक भूमिका को नजरअन्दाज किया है। लोगों की नजरों में यह पार्टी को जड़- मूल से मिटाने का अथक प्रयास जैसा लग रहा है। इसका ही स्वाभाविक असर है कि पार्टी मेंo ऊपर से नीचे तक निष्ठावान एवं समर्पित कार्यकर्ता और कांग्रेस के समर्थक जन हतोत्साहित होकर उदासीनता एवं निष्क्रियता के साथ घुटन महसूस कर रहे हैं ; क्योंकि अवसरवादी, स्वार्थी, धनबली लोगों का पार्टी में बढ़ती वर्चस्प सक्रियता के नाम पर जमघट लगा रहता है, जबकि वे न तो पार्टी के वफादार हैं, न ही संगठन के। किंतु ऐसे तत्व सत्ता प्राप्ति और संगठन पर कब्जे के खेल में अत्यंत ही माहिर खिलाड़ी हैं, जो शीष॔ नेतृत्व को घेर कर, येन-केन-प्रकारेण संबंधित नेताओं को खुश कर टिकट प्राप्त करने, संगठन पर कब्जा करने में सफलता हासिल कर लेते हैं। अपने स्वयं के एक टिकट के लिए जिला और प्रदेश को भी गिरवी रखने में जरा सी भी शर्म एवं संकोच ऐसे नेता नहीं करते। ऐसे में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को गंभीरता से विचार- विमर्श के पश्चात कांग्रेस पार्टी तथा देश के हित और कल्याण के मुद्दे पर समुचित कदम उठाए उठाकर कांग्रेस को बचाने का प्रयास करना चाहिए। अपने मातहत कमेटी को, कार्यकर्ताओं को स्पष्ट निर्देश देना चाहिए क्योंकि अनिर्णय की स्थिति में पार्टी को बहुत ही नुकसान हो चुका है, आगे भी नुकसान होने की संभावना बनी हुई है जिसे अपने जीवनकाल में समर्पण भाव से लगे हुए कांग्रेस जन सहन नहीं कर पाने की स्थिति में पहुंच गये हैं।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ