मौन रहकर भी मुखर जो हो रहा है,
दर्द चेहरे से बयां वह हो रहा है।सोचा था जीऊँगा तन्हा, खुशहाल होकर,
तन्हा जीवन आज बोझिल हो रहा है।
उम्र गुजरी, सोचा नहीं मैंने कभी कुछ,
जो नहीं सोचा वही सब हो रहा है।
साथ थे हजारों हमसफ़र दौरे जवानी में,
आज क्यों सूना सा जीवन हो रहा है।
मधुमास के दिन और रातें अब कहाँ,
पतझड़ सा यौवन, उजड़ा सा आँगन हो रहा है।
आँसू नहीं बहते मेरी आँख से अब,
आँसुओं का अहसास क्यूँ कर हो रहा है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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