दुअरा खड़ा भिखारी,
एक मुठ्ठी अन्न बाटे मांगत।ना कहे में बहुरिया,
तोहरा लाज नइखे लागत।।
केतना देर से गरीब भिखारी,
"कुछ दिहीं मलकिनी ",
कह कह के चिल्लात बा।
अइसन तोहार दानाई मरल बा,
तोहरा ना सुनात बा।।
अइलू तूं झमक के बाहर,
कह दिहलू जे फेरा कर।
आगे जा दूसरा दुआरी,
उहें जाके आपन पेट भर।।
पेट जरला पर केहू आदमी,
भीख मांगे आवेला।
ना मिलला पर आंसू पिके,
बेचारा रह जावेला।।
कुछ ना घटी तोहर बहुरिया,
एक मुठ्ठी दान कइला से।
कतना आशीर्वाद तू पइबू,
गरीब का खुश भइला से।।
शौक से केहू भीख ना मांगे,
ओकर आत्मा पहिले मर जाला।
सामर्थ्यवान जब ना कहेला तब,
भीखारी से भी नीचे गिर जाला।।
जय प्रकाश कुवंर
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