ऐसे हीं नहीं
--: भारतका एक ब्राह्मण.संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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ऐसे हीं नहीं
टूटते हैं रिश्ते
अनदेखा होने पर
सबसे पहले वो
दरकता है आहिस्ते-आहिस्ते
समय रहते गर
नहीं सम्हाला गया उसे
तो फिर वह
बिल्कुल बिखर जाता है
और फिर यह मन
घुटता रहता है भीतर हीं भीतर
खोते-खोते रोते-रोते
ये सोचकर कि
यहां कोई किसी के नहीं होते
क्या मिलता है तुम्हें ऐसा कर
जो बना दी जिंदगी को जहर
तुमसे हो सके अगर
तो मुझे देना उत्तर
अपने मुहब्बत के वास्ते
मेरे दिल के रास्ते
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वलिदाद,अरवल(बिहार)
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