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सभी मनोकामनाओं को शीघ्र पूर्ण करती है केसपा (गया, टिकारी ) की" मां तारा देवी "

सभी मनोकामनाओं को शीघ्र पूर्ण करती है केसपा (गया, टिकारी ) की" मां तारा देवी "

सुरेन्द्र कुमार रंजन
गया जिला से 38 किलोमीटर और टिकारी प्रखंड से 13 किलोमीटर उत्तर केसपा ग्राम में स्थित मां तारा देवी का मंदिर विदेशियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां मां तारा के अलावा विष्णु भगवान, गणेश भगवान, गरुड़ जी एवं भगवान बुद्ध की प्राचीन काले पत्थर की मूर्ति प्राचीनतम मूर्तियां इस बात का गवाह है कि यह स्थान प्राचीन काल से ही आध्यात्म का केंद्र रहा होगा।इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि प्राचीन काल में मां तारा देवी के दर्शन करने के उद्देश्य से ही भगवान बुद्ध यहां आये तभी यहां उनकी मूर्ति खुदाई में निकली थी।यह मंदिर आज लोक आस्था का केंद्र बना हुआ है। इसके बढ़ते हुए महत्व को देखते हुए हाल ही में बिहार सरकार के पर्यटन विभाग के अधिकारी अभिजीत कुमार अपनी टीम के साथ इस मंदिर का सर्वेक्षण करने आए हुए थे । सर्वेक्षण के बाद उन्होंने आश्वासन दिया कि अति शीघ्र ही मंदिर के सौन्दर्यीकरण का कार्य कराया जाएगा। साथ मंदिर परिसर में दुकानों का भी निर्माण करवाया जाएगा।
यों तो इस मंदिर में सालों भर लोग पूजा अर्चना के लिए आते रहते हैं लेकिन आश्विन के शारदीय नवरात्र एवं चैत्र नवरात्र में विशेष अनुष्ठान किया जाता है। इस अवसर पर श्रद्धालुओं एवं भक्तजनों के द्वारा नौ दिनों तक अनवरत घी के अखंड दीप जलाए जाते हैं। यहां पर दस दिनों तक भव्य पूजा अर्चना एवं अनुष्ठान होता है। अष्टमी एवं नवमी को सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है जिसमें बड़े-बड़े कलाकारों को बुलाया जाता है।इसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु भक्त आते हैं। इस मंदिर की यह मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे एवं पवित्र मन से मन्नत मांगते हैं वह अतिशीघ्र पूरी हो जाती है। अभी तक इस मंदिर का जो भी विकास हुआ है वह मन्नत पूरी होने वाले भक्तों एवं ग्रामीणों के सहयोग से ही हुआ है। किसी ने मां की आंख सोने की बनवाई तो किसी ने सोने की नाक बनवाई तो किसी ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। पर्यटकों को ठहरने के लिए एक अतिथि गृह का भी निर्माण करवाया गया है।
मां तारा देवी मंदिर के निकट कश्यप ऋषि के आश्रम का उल्लेख मिलता है जो दो मंजिला था। नीचे का कक्ष जमीन के अंदर था जो साधना कक्ष था और जमीन के ऊपर निवास कक्ष था।ज्ञात होता है कि कश्यप संहिता की रचना कश्यप ऋषि ने इसी स्थान पर की थी जिसकी उपयोगिता आयुर्वेद में आज भी है। इन्हीं के नाम पर इस गांव का नाम कश्यपपुरी पड़ा था जो अपभ्रंश होकर आज केसपा हो गया है। इस बात का जिक्र कई पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है।
मंदिर की स्थापना के संबंध में बताया जाता है कि इस मंदिर की स्थापना महर्षि कश्यप के द्वारा की गई थी। यह मंदिर बौद्ध वास्तुकला में अद्वितीय और कई संस्कृतियों का एक वास्तुशिल्प समावेशन है।यह मंदिर एक उच्च और व्यापक प्लिंथ पर खड़ा है और इसमें एक उग्र पिरामिड स्पियर, स्क्वायर क्रॉस-सेक्शन और दो छोटे स्पीयर हैं। कच्ची मिट्टी और गदहिया ईंट से निर्मित मंदिर की दीवारें 4- 5 फीट मोटी है।गर्भ गृह की सुंदर नक्काशियां मंदिर में प्रवेश करने वाले ‌श्रद्धालुओं को काफी आकर्षित करती है।
मंदिर में स्थायी रुप में मां तारा की काली रुपी छवि है जो ज्ञान को दर्शाती है।गर्भ गृह में विराजमान मां तारा देवी की वरद हस्त मुद्रा में उतर विमुख 8 फीट की आदम कद काले पत्थर की प्रतिमा बनी हुई है। मां तारा के दोनों ओर दो यागिनियां खड़ी हैं। प्रतिमा पर प्राकृत भाषा में कई लेख उत्कीर्ण हैं जिसे आज तक नहीं पढ़ा जा सका है। मंदिर के चारों ओर एक बड़ा चबूतरा है जिसका पौराणिक महत्व है। यहां एक ऐसा चमत्कारिक हवन कुंड है जिसमें नवरात्रा के दौरान प्रतिदिन दस से बीस मन हवन सामग्री से हवन किया जाता है लेकिन चमत्कार देखिए कि भस्म की राख कहां विलीन हो जाती है यह पता नहीं चलता।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन से निकले विष को लोक कल्याण के लिए भगवान शिव ने पी लियाऔर उसके प्रभाव से वे मूर्क्षित हो गए तो तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। तभी मां तारा देवी प्रकट हुई और भगवान शिव को अपनी गोद में लेकर अपना स्तनपान कराने लगी। उनके दूध से विष का प्रभाव समाप्त हो गया और तभी से मां तारा देवी की जय-जयकार तीनों लोकों में होने लगी।
यह मंदिर बुद्ध काल से भी प्राचीन है। आस्था और विश्वास का केंद्र माना जाने वाला इस मंदिर की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि इसके दर्शन करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, नागालैंड के पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार सहित कई मंत्री, सांसद और विधायक यहां अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। इस मंदिर की महिमा की चर्चा दिनों दिन इतनी होने लगी थी कि मां तारा देवी के दर्शन के लिए विदेशी सैलानी भी विवश हो गये। यहां पर फ्रांस, जर्मनी, थाईलैंड, भूटान सहित कई देशों के सैलानी मां तारा देवी, भगवान बुद्ध, भगवान विष्णु और भगवान गणेश के दर्शन करने आ चुके हैं। ग्रामीणों के द्वारा पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग और मंदिर की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए हाल ही में बिहार सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा अधिकारी अभिजीत कुमार को इस मंदिर का सर्वेक्षण करने के लिए भेज गया था। उन्होंने आश्वासन दिया है कि जल्द ही मंदिर का सौन्दर्यीकरण किया जाएगा और मंदिर परिसर में दुकानों का निर्माण करवाया जाएगा।
इस मंदिर के अलावा सैंकड़ों वर्ष पहले जमीन की खुदाई में 6 फीट से भी अधिक ऊंची आदम कद काले पत्थर की भगवान बुद्ध प्रतिमा मिली थी जो इस बात का प्रमाण है कि भगवान बुद्ध यहां प्रवचन देने आए थे। गरुड़ पर आसीन भगवान विष्णु की काले पत्थर की आदम कद प्रतिमा एवं भगवान गणेश की प्रतिमा इस बात का गवाह है कि यह स्थान प्राचीन काल से ही आध्यात्म का केंद्र रहा होगा। मंदिर से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराने में जिन ग्रामीणों का सहयोग प्राप्त हुआ उनमें से मुखिया प्रतिनिधि अमिताभ कुमार, पैक्स अध्यक्ष सुबोध कुमार, हिमांशु शेखर, विक्रम,पिंकू शर्मा, रबिन्द्र रंजन,बिरेन्द्र रंजन,प्रमोद कुमार, नरेंद्र कुमार, श्याम कृष्ण उर्फ रिंटू आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
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