पीपल का पेड़
वैसे तो हरेक पेड़ हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये हमें सांस लेने और जीवन रक्षा के लिए शुद्ध आक्सीजन देते हैं। पेड़ों से हमें फल, लकड़ी और अनेक प्रकार की औषधि प्राप्त होती है तथा इनकी छाया से हमें गर्मी से राहत मिलती है। पेड़ों की मौजूदगी से अच्छी बारिश भी होती है।
परंतु खासकर पीपल के पेड़ को भारतीय आध्यात्मिक और सास्कृतिक परंपराओं में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है । भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं को वृक्षों में पीपल के समान बताया है। पीपल का पेड़ लगभग हर मंदिर अथवा आध्यात्मिक स्थान पर पाया जाता है। अगर धार्मिक मान्यताओं को देखा जाए तो पीपल के पेड़ को भगवान् विष्णु, ब्रह्मा और शिव का निवास स्थान माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि पीपल वृक्ष के जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में शिव का वास होता है। पीपल के पेड़ में पितरों और तीर्थों का भी वास होता है तथा इसके फलों में सभी देवता रहते हैं। इसलिए पीपल के पेड़ को दैवीय पेड़ माना गया है। इसे मोक्ष का वृक्ष भी कहा जाता है। भगवान् गौतम बुद्ध ने पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर ज्ञान की प्राप्ति की थी, इसलिए इसे बोधि वृक्ष भी कहा जाता है। श्री राम चरित मानस के उत्तर कांड में आये एक प्रकरण के अनुसार भगवान के परम भक्त श्री काकभुशुण्डि जी भी उत्तर दिशा में सुमेर पर्वत श्रृंखला के नील पर्वत पर एक पीपल वृक्ष के नीचे ही बैठकर योग ध्यान करते हैं। पीपल का वृक्ष जन्म और पुनर्जन्म के चक्र का प्रतीक है, जिससे मनुष्य को जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। यह पेड़ ध्यान और योग के लिए आदर्श स्थान माना जाता है।
इन आध्यात्मिक महत्वों के अलावा पीपल के पेड़ को जीवन का रक्षक भी कहा जाता है, क्योंकि यह वृक्ष चौबीस घंटे आक्सीजन देता है। यह वृक्ष आक्सीजन का उत्पादन करने वाला सबसे उपयोगी वृक्ष है। एक परिपक्व पीपल का वृक्ष एक दिन में नौ दश लोगों के लिए आक्सीजन पैदा कर सकता है। पीपल के पतों में अनेक औषधीय गुण होते हैं। इस पेड़ में प्रोटीन, फैट, कैलशियम, आयरन और मैंगनीज जैसे पोषक तत्व होते हैं । पीपल पेड़ की आयु लगभग १००० वर्ष से १५०० वर्ष की होती है। इस वृक्ष के छिलके पत्तों से लेकर प्रायः सभी भाग किसी न किसी रूप में औषधीय गुणों से परिपूर्ण होते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा शास्त्र में पीपल के सभी अंगों का समुचित प्रयोग किया जाता है। इतना ही नहीं, इसके पत्तों और नाजुक टहनियों को हाथी बड़े चाव से खाते हैं। अतः इसका एक नाम गज-भक्ष्य भी है।
इस प्रकार पीपल वृक्ष के भारतीय संस्कृति में इतना महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और सांस्कृतिक होने तथा इतना भरपूर औषधीय गुणों के होने के बावजूद भी संरक्षण नहीं हो पाया है और यह वृक्ष नष्ट होते चला गया है। पहले प्रायः हर गाँव में अनेकों विशाल पीपल वृक्ष हुआ करता था। आज स्थित यह है कि गाँवों में पीपल वृक्ष खोजने पर भी नहीं मिलता है। अब गाँव में भी यह वृक्ष बिरले कहीं किसी मंदिर के पास मिल जाता है। चूंकि इस वृक्ष को दैवीय और मोक्ष वृक्ष कहा जाता है, इसलिए किसी की मृत्यु हओजाने पर उसकी अंतेष्ठी के बाद एक विधान के अनुसार पीपल वृक्ष में एक घंट टांग कर उसमें षटकर्म करने वाले द्वारा दश दिनों तक जल देकर मृत आत्मा को संतुष्ट किया जाता है। लेकिन आज मुश्किल से गांवों में भी पीपल वृक्ष पास में नहीं पाया जाता है और दूर जाकर जहाँ पीपल वृक्ष मिलता है, वहाँ यह विधान करना पड़ता है। शहर में तो और भी मुश्किल होता है।
आज अगर कहीं पीपल पेड़ उगता भी है तो लोग उसे उखाड़ कर फेंक देते हैं, जबकि पीपल पेड़ को उखाड़ फेंकने का भी कुछ नियम है। सरकार की तरफ से इस बहुपयोगी वृक्ष को लगाने की कोई दिलचस्पी और योजना नहीं है, बल्कि इसके जगह यूकलिपट्स आदि के पेड़ लगाने की योजना जारी है। इस तरह यह वृक्ष भारतीय संस्कृति में इतना उपयोगी होने के बावजूद उपेक्षित हो गया है। जय प्रकाश कुवंर
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