फिर भी चेहरे पर हो मुस्कान
कंटक पथ संघर्ष अथाह,समय चक्र विपरीत गति ।
हर कदम उपेक्षा तिरस्कार,
दिग्भ्रमित सी मनुज मति ।
दूर दूर तक कर्ण प्रिय ,
किंचित नहीं मधुर गान ।
फिर भी चेहरे पर हो मुस्कान ।।
जीवन डगर पर नहीं,
जब कोई सच्चा मित्र ।
अनुपम भाव विलोपन,
धुंधल लिए सारे चित्र ।
सदाचार मार्ग पर भी चाहे,
मिल रहा हो खूब अपमान ।
फिर भी चेहरे पर हो मुस्कान ।।
जब संकट मेघ आच्छादित,
विचरण परिध चारों ओर ।
क्रोध घृणा वैमनस्य अनंत,
नैराश्यता परिपूर्ण हो भोर ।
घोर परिश्रमी तपिश पर भी,
अधूरे रहें सारे अरमान ।
फिर भी चेहरे पर हो मुस्कान ।।
जब पग पग दिखता हो,
सत्य थोड़ा परेशान ।
धर्म कर्म नैतिक राह पर ,
घट रही हो मनुज शान ।
भौतिक चकाचौंध कारण,
वंचित रहे योग्यता पहचान ।
फिर भी चेहरे पर हो मुस्कान ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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