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सपने मोहब्बत के

सपने मोहब्बत के

गीत लिखू या गजल लिखू
सब में तेरा नाम है।
प्यार मोहब्बत की बातों में
तेरा ही इकरार है।
सुनने को तेरे मुख से
क्यों अभी भी इंतजार है।
सुनकर कुछ तेरे से मैं
शायद नया कुछ लिख सकू।।


मिलना तो संभव है नही
पूर्व और पश्चिम का।
मैं सागर हूँ और तुम हो खड़ी
कैसे मिलन अब होगा।
प्यार मोहब्बत की बातों से
क्या दिल दोनों का भरेगा।
मिलन हमारा कैसे होगा
कुछ तो तुम्हें पता होगा।।


दूर से ही बिना ही देखे
कैसे प्यार में डूबे।
न आवाज़ सुनी है मैंने
न ही रूप तुम्हारा देखा।
तुमने तो शायद देखा है
मुझको कोई महफ़िल में।
पर मैं अबतक न देख सका
रूप तेरा सुंदर सलोना।।


कब तक तुम तड़पाओगी
और मुझे तरशाओगी।
प्यार-मोहब्बत के इस बंधन में
महल हवाई तुम बनाओगी।
खुद खोओगी और मुझको भी
इसी महल में ले जाओंगी।
जिसमें सपने ही सपने होगें
पर ख्याब अधूरे अपने होगें..।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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