जब कर्मफल मिलना,
एक अटल सिद्धांत है।फिर यह सोचकर मन अब,
क्यों इतना क्लांत है।।
सोचना तो तब था,
जब तुम बीज बोये जा रहे था।
बिना कारण ही सबका,
दिल दुखाये जा रहे था।।
पद और मद ने तुमसे,
वो सब कर्म कराया।
जो न तो कभी अच्छा था,
और न किसी के मन भाया।।
अब तो समय बीत चुका है,
बीज अब अंकुरित हो चुका है।
अब धरती को फाड़ कर,
बाहर आने का मन बना चुका है।।
कल को पेड़ बन कर,
तेरा जीवन वृक्ष होगा।
अपने कर्मों के मुताबिक ही,
तुम उसका फल चखेगा।।
अब हंसने रोने का,
जीवन में क्या जबाब है।
कर्मफल ईश्वरीय गणित है,
इस तुले पर पक्का हिसाब है।।
अरे घमंडी मानव सोचो अभी भी,
घमंड किसी का न कायम रहा है।
युगों युगों से ईश्वर के हाथों,
घमंडी का नाश होता रहा है।।
जय प्रकाश कुवंर
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