कोर कसर सब पूरी हो गई,
जीना अब मजबूरी हो गई।घिरी घटा चहूँ और,
न जाने कब होगी भोर?
बता दो मुझको कान्हा
जता दो मुझको कान्हा।
द्वापर में तो एक कंस था
अत्याचार हुआ था भारी।
आज घिरे सब चहूँ ओर
अत्याचारों का ओर न छोर।
मुक्ति मार्ग सिखा दो कान्हा,
सत्य राह दिखा दो कान्हा।
सत्ता सुख में लिप्त हैं सत्ता
त्रस्त सभी नर और नारी।
सन्ताने निरंकुश सी दिखती,
दिखती बेबसी और लाचारी?
कोई उपाय बताओ कान्हा,
संकट मुक्त कराओ कान्हा।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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