कलयुगी पुत्र
कुलयुगी पुत्र क्या गुल खिला रहे हैं,
बूढ़े माँ-बाप को वो घर से भगा रहे हैं।
कपड़े धो रहे वे बर्तन माँज रहे हैं,
पत्नी के इशारों पर वे नृत्य कर रहे हैं।
मॉल घूमा रहे और सिनेमा दिखा रहे हैं,
होटलों में उनको लच और डिनर करा रहे हैं।
सब्जियाँ मंगा रहे वे झाड़ू लगवा रहे हैं,
माँ-बाप को बिन वेतन नौकर बना रहे हैं।
फैशन पर बीबी के हजारों लूटा रहे हैं,
पर मां-बाप को दाने को तरसा रहे हैं।
बड़े नाजों से जिन्होंने पाला तुम्हें,
उन्हें ही तू खून की आँसू रुला रहे हो ।
तन-मन-धन से जिन्होंने सेवा की तेरी,
आज तुम उन्हें ही पल-पल सता रहे हो।
माँ-बाप को जो पल-पल तड़पाए,
जीवन में वह कभी सुखी न रह पाए ।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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