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मैं बँधी तुम्हारे मोहपाश में

मैं बँधी तुम्हारे मोहपाश में

डॉ रीमा सिन्हा
मैं बँधी तुम्हारे मोहपाश में,
तुम्हें लगा मैं शक्तिहीन हूँ।
देखकर भी अनदेखा किया
तुम्हारी गलतियों को,
तुम्हें लगा मैं दृष्टि-विहीन हूँ।
सराहना किया जब लोगों ने
तुम हर वक़्त निःशब्द रहे,
मैं इक तुम्हारी सरहाना को तड़पती रही,
तुम्हें लगा मैं तुम्हारे अधीन हूँ।
राह मिले कई पर मंजूर नहीं
था सफ़र तुम्हारे बिन,
तुम्हें लगा मैं पथ-विहीन हूँ।
कमज़ोर इतनी भी नहीं थी,
पर सहारा बस तुम्हारा ही चाहिए था,
और तुम्हें लगा मैं भाग्य-विहीन हूँ।
मेरी खुशियों का अर्थ सिर्फ तुम,
और तुम्हारे दुख में तुमसे ज़्यादा मैं रोई,
पर तुमने समझा मैं अर्थहीन हूँ।
स्त्री कमज़ोर होती नहीं,
वो तो प्रेमवश कमज़ोर पड़ जाती है,
विश्वास शीघ्र होता नहीं उसे,
पर मोहवश अँधी हो जाती है।
निज अस्तित्व को भूल जाना
पसंद होता सिर्फ उसकी ख़ातिर,
जिसपे जी जान वो लुटाती है।
काश!तुम पुरुष समझ पाते हृदय स्त्री का,
काश!समझ पाते क्यों वह जगत दात्री
और जननी कहलाती है।
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