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रोग है

रोग है

एक पल भी तुम बिन रहा नही जाता।
तुम्हारा दर्द भी मुझसे सहा नही जाता।
क्यों इतना प्यार दिया तुमने मुझको।
की तुम बिन अब जिया नही जाता।।


तुम्हारी याद आना भी कमाल करती है।
कभी आकर देखना क्या हाल करती है।
रोज सपनो में आकर तुम चले जाते हो।
फिर पूरा दिन हमें बेचैन कर देते हो।।


इससे अच्छी तो तन्हाईयाँ होती है।
जो सदा ही हमें तन्हा तो रखती है।
और प्यार व्यार से हमें बचती है।
और हकीकत से रूबा-रु कराती है।।


इश्क करना कोई आसान बात नही।
मंजुनू बनकर जीना आसान नही होता।
पागल सा कर देता है ये इश्क इंसान को।
क्योंकि ये रोग होता है अलग तरह का।।


जय जिनेंद्र

संजय जैन " बीना" मुंबई
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