देखीं कइसन हाल भइल बा।
जय प्रकाश कुवंरदेखीं कइसन हाल भइल बा।
अब त मोबाईल काल भइल बा।।
काम धंधा सब पीछे गइल।
जब से मोबाईल साथी भइल।।
घर में चूल्हा खाली जरत बाटे।
हांडी उपर ना चढ़त बाटे।।
कनियां घूघंट ओढ़ले बाड़ी।
भीतर मोबाईल चलावत बाड़ी।।
कहीं कुछो छुट ना जाए।
भले गैस खतम हो जाए।।
बबुआ हांथ में किताब धइले बाड़े।
सब लोग जानत बा जे पढ़त बाड़े।।
मोबाईल पर आंख गडवले बाड़े।
फोटो पर ध्यान लगवले बाड़े।।
रास्ता चलल बुझात नइखे।
आंख मोबाईल से हटावल जात नइखे।।
केहू मोबाईल ले के झुर तर बैठल बा,
केहू मोबाईल ले के बागान में बैठल बा,
केहू मोबाईल ले के पैदल चलत बा,
केहू मोबाईल ले के सवारी में बैठल बा,
केहू मोबाईल ले के अकेले बाटे,
केहू मोबाईल ले के झुंड में बाटे,
केहू मोबाईल ले के घर परिवार में बाटे,
केहू मोबाईल ले के आफिस दूकान में बाटे।।
का लइका, का सेयान।
का बुढ़ऊ, का जवान।।
आज कल मोबाईल के नशा,
सब पर सवार बा।
एकरा सामने लागत,
सब कुछ बेकार बा।।
घर में एगो मोबाईल बा,
त छीना झपटी होत बा।
केहू ले के हंसत बा,
त केहू दे के रोवत बा।।
गाँव, देहात, शहर, सगरो एके हाल बा।
इ सब आजकल मोबाईल के कमाल बा।।
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