मिलो तो सनम
आओं चले हम तुमएक बाग में सनम।
गीत गाये प्यार के
इस बाग में सनम।
बहता जहाँ पानी और
चलती हो हवाएं नम।
ऐसे किनारे पर हम
थोड़ा बैठे जायें सनम।।
पेड़ हो हरेभरे और लगे हो
उन पर कुछ तो फल।
देख दिल झूम उठे
और खाने को करे मन।
ऐसे ही बागों में अब
मिलता है हमको सूकून।
इसलिए खोज रहा हूँ
ऐसे प्यारे बाग को।।
सूरज चाँद की किरणें देख
बाग भी आज इतरा रहा।
चारों तरफ फूल खिले है
और फैली उनकी खुशबू है।
भवरे उन पर डोल रहे
पीने को उनका रस।
हम भी कैसे पाए उन्हें
इस प्यारे से बाग में..
इस प्यारे से बाग में।।
जय जिनेंद्रसंजय जैन "बीना" मुंबई
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