पुनर्विवाह
विधवा का जीवन बड़ा ही कष्टकर होता है ,जीवन साथी के बिना जीना दुष्कर होता है।
अपनों की नजरों में वह सदा खटकती रहती है,
शांति की खोज में वह सदा भटकती रहती है।
समाज की नजरों में वह सदा तिरस्कृत होती है,
इसी वजह से मन उसका सदा विचलित रहता है।
खतरा गैरों से ज्यादा अपनों से ही होती है,
अपनी अस्मिता बचाने की चिंता सताती रहती है।
धन-दौलत के कारण उसको जान गंवानी पड़ती है,
एकाकी जीवन का उसको मूल्य चुकानी पड़ती है।
नारकीय जीवन से बेहतर पुनर्विवाह का बंधन है,
सुखी जीवन जीने का सबसे बड़ा यह ऑप्शन है।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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