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गाँव के लोग भी अब

गाँव के लोग भी अब

जय प्रकाश कुवंर
गाँव के लोग भी अब, खुबे व्यस्त हो ग‌इल।
सब गाँव में घूर तापल, अब ध्वस्त हो ग‌इल।।
पौष माघ के ठंडी, केहू से ना सहाला।
जाड़ा के एही महीना में, पड़त रहे पाला।।
गरीबन का घर में रहे, ना रजाई ना कंबल।
ठंडा से बचे खातिर, आग आउर घूर रहे संबल।।
दुअरा दुअरा आग जला के, घूर तापे लोग।
पुआल भुसा, पत‌ई के, रहे ना कवनो क्षोभ।।
दिन में दालानी तर इकट्ठा करके, राखे सब लोग।
सूरज डुबले घूर जला के, तापे सब लोग।।
देह गरम भ‌इला पर, खाना भी नीमन लागत रहे।
बिना कंबल रजाई के, ठंडी दूर दूर भागत रहे। ।
गाँव के लोग अब घूर लगावल, तापल, भुला ग‌इल।
जवन चीज गाँव में होत रहल, अब शहर में आ ग‌इल।।
अब खुब ठंडी परला पर, शहर में सरकारी ऐलान बा।
चौक चौराहा पर अलाव जलावे के, सरकारी फरमान बा।। 
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