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वह लड़की मृगनयनी सी

वह लड़की मृगनयनी सी 

शुभ्र ज्योत्स्ना मुखमंडल,
अंतर पटल प्रीति निर्झर ।
पुलकित प्रफुल्लित आभा,
तृषा तृप्त आनंद झर झर ।
हाव भाव मस्त मलंग,
प्रीत सुरभि अयनी सी।
वह लड़की मृगनयनी सी  ।।

प्रति पल मिलन उमंग,
स्मृति पट मोहिनी रूप  ।
श्रृंगार अति मोहक सोहक,
आकर्षण बिंब नेह तुरुप।
यौवन उभार मद अर्णव,
नयनन धार उज्जयिनी सी।
वह लड़की मृगनयनी सी ।।

सम्पर्क क्षेत्र उल्लास मोद,
स्वप्न माला रूप जीवंत ।
चाल ढाल उत्साह आरेख ,
सौंदर्य अनुपमा अत्यंत ।
हिय प्रिय भाव भंगिमा,
मुस्कानी मनुहार शयनी सी।
वह लड़की मृगनयनी सी ।।

अंतःकरण नेह सरोवर,
अभिव्यक्ति भाव अतरंग ।
शब्द सौरभ चाह अथाह,
चारु चंद्र चंचलता संग । 
निशि दिन रमणीक प्रभा,
मस्ती यौवन रस पियनी सी।
वह लड़की मृगनयनी सी ।।

कुमार महेन्द्र

(स्वरचित मौलिक रचना)
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