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अंधेरे रास्तों पर, भटकते रहे हम

अंधेरे रास्तों पर, भटकते रहे हम

पंकज शर्मा
अंधेरे रास्तों पर, भटकते रहे हम,
खोजते रहे खुद को, हर नज़र में।
दूर-दूर तक फैला था, अज्ञात सागर,
तलाश में थे हम, ढूंढते नया किनारा।

दुनिया की भीड़ में, खो गए थे हम,
अपने ही स्वप्न में, उलझे रहे हम।
हर चेहरे में, ढूंढते रहे अपना साया,
ढूंढ़ा तो बहुत, नहीं कोई मिल पाया ।

तुम एक दिन, अकेले में बैठकर सोचना,
कि क्यों इतना भागते, क्यों इतना रोना?
आंखें बंद कीं, और मन को शांत किया,
तब जाकर समझ आया, कि सच क्या है। 

अंदर ही छुपा है, सारा जहान,
खोजना है बस, अपने मन का कोना।
दुनिया की मोहमाया से, मुंह मोड़कर,
अपने भीतर की आवाज को सुनकर।

अंत में समझ आया, कि सच्चा सुख,
अपने आप में ही है, बस थोड़ा सा मुड़कर।
दुनिया की दौड़ से, थोड़ा सा हटकर,
अपने आप को समझकर, जीना सीखकर।

बहुत दूर तक देखा, कोई नजर ना आया,
तब हमने, खुद को खुद का पता बताया।
तुम भी करो ये यात्रा, अपने भीतर की ओर,
खोजो खुद को, और बनो एक नया तारक। 

.       स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
               "कमल की कलम से"
      (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान) 
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