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धन दौलत सम्पत्ति जायदाद

धन दौलत सम्पत्ति जायदाद ,

जीवन के ये रासायनिक खाद ।
न जीवन पूर्व न जीवन बाद ,
जीवन हेतु जैसे तेल के गाद ।।
धन दौलत सोना चाॅंदी हीरा ,
सारे केवल जीवन के शृंगार ।
वह भी शृंगार हुआ है अधूरा ,
प्राण का ग्राहक धन अपार ।।
धन दौलत सारे मिथ्या होते ,
धन संग्रह कोठी आलिशान ।
दिन में मिलते तो चैन नहीं हैं ,
निशा नींद भी बनी बेईमान ।।
श्रम से कोई धन नहीं बढ़ते ,
कर सके कोई ऐशो आराम ।
चोरी बेईमानी ईर्ष्या शोषण ,
धन संग्रह के सारे हैं आयाम ।।
धन धन चिल्ला रहे हो तुम ये ,
सच्चा धन तुम ढूॅंढ़ लो प्यारे ।
धन के संग ही निर्धन बने हो ,
निर्धन सुखी धन से किनारे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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