धन दौलत सम्पत्ति जायदाद ,
जीवन के ये रासायनिक खाद ।न जीवन पूर्व न जीवन बाद ,
जीवन हेतु जैसे तेल के गाद ।।
धन दौलत सोना चाॅंदी हीरा ,
सारे केवल जीवन के शृंगार ।
वह भी शृंगार हुआ है अधूरा ,
प्राण का ग्राहक धन अपार ।।
धन दौलत सारे मिथ्या होते ,
धन संग्रह कोठी आलिशान ।
दिन में मिलते तो चैन नहीं हैं ,
निशा नींद भी बनी बेईमान ।।
श्रम से कोई धन नहीं बढ़ते ,
कर सके कोई ऐशो आराम ।
चोरी बेईमानी ईर्ष्या शोषण ,
धन संग्रह के सारे हैं आयाम ।।
धन धन चिल्ला रहे हो तुम ये ,
सच्चा धन तुम ढूॅंढ़ लो प्यारे ।
धन के संग ही निर्धन बने हो ,
निर्धन सुखी धन से किनारे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com