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प्रेम में विरह की सिसकियां

प्रेम में विरह की सिसकियां

ऋषि रंजन पाठक
मृत्यु का विलाप क्षणिक होता है,
एक तीव्र दर्द, जो थम जाता है।
पर प्रेम में विरह की सिसकियां,
हर पल, हर क्षण रुलाती हैं।


सांसें चलती हैं, पर जीवन ठहर जाता है,
आंखें खुली रहती हैं, पर स्वप्न बिखर जाता है।
वह स्मृतियों की कतरनें,जिनमें तुम्हारी परछाई बसती है,
हर बार दिल को चीर देती हैं।


हर धड़कन में तुम्हारा नाम गूंजता है,
हर सांस में तुम्हारी खुशबू रुक जाती है।
तुम्हारे बिना यह संसार,
एक खाली काव्य, अधूरी रचना सा लगता है।


विरह की सिसकियां रातों को जगाती हैं,
सपनों के पर्दों को बार-बार गिराती हैं।
तुम्हारे लौटने की आहट,
हर पल दिल को छलती है।


यह दर्द कोई रोने से धुलता नहीं,
न कोई शब्द इसे पूरी तरह कह पाते हैं।
यह वह आग है, जो राख बनकर भी,
अनुभवों के अंगार छोड़ जाती है।


मृत्यु का शोक तो शांत हो जाता है,
पर विरह का दर्द अमर हो जाता है।
एक ऐसी कसक, जो जीने का बहाना भी देती है,
और हर पल मारती भी है।


मृत्यु तो बस एक सत्य का स्वीकार है,
पर विरह अधूरे प्रेम का उपहार है।
जहां शब्द मौन हो जाते हैं,
पर मन का कोना-कोना चीखता है।


विरह में बहते आंसू,
नदी नहीं, महासागर बन जाते हैं।
हर बूंद में छुपा होता है,
तुम्हारे लौट आने का इंतजार।


यह सिसकियां, यह टूटन,
जीवन के हर मोड़ पर पीछा करती है।
और एक दिन, जब जीवन थमता है,
तब भी यह विरह अमर रह जाती है।


प्रेम में विरह का यह अघोषित सत्य,
सिर्फ वही समझ सकता है,
जो कभी इस दर्द के सागर में,
डूबकर अमर हो गया हो।


मृत्यु से तो सुलह हो सकती है,
पर विरह?
यह एक ऐसा श्राप है,
जो प्रेम की पूजा का प्रसाद बन जाता है।


मृत्यु का विलाप एक अंतिम शोक है,
जो अश्रु बहाकर समाप्त हो जाता है।
पर प्रेम का विरह
,एक न खत्म होने वाला रणक्षेत्र बन जाता है।
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