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विकलांगता के विषय में गर्भावस्था से ही आरंभ होना चाहिए चिंतन , हेल्थ इंस्टिच्युट में विश्व विकलांग दिवस पर ५ दिवसीय कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए डा सी पी ठाकुर ने कहा ।

विकलांगता के विषय में गर्भावस्था से ही आरंभ होना चाहिए चिंतन , हेल्थ इंस्टिच्युट में विश्व विकलांग दिवस पर ५ दिवसीय कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए डा सी पी ठाकुर ने कहा ।

पटना, २ दिसम्बर। विकलांगता का विषय बहुत बड़ा है। गर्भावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक इस विषय पर चिंतन होना चाहिए। यदि गर्भवती स्त्री और गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य का उचित ध्यान नहीं रखा गया तो शिशु जन्मजात विकलांग हो सकता है। जन्म के बाद भी कुपोषण और रोग विकलांगता के कारण हो सकते हैं। वृद्धावस्था तो स्वयं अनेक प्रकार की विकलांगता का कारण है।
यह बातें सोमवार को बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युट ऑफ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च में, विश्व विकलांग दिवस के अवसर पर आयोजित पाँच दिवसीय समारोह का उद्घाटन करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री पद्मभूषण डा सी पी ठाकुर ने कही। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था में ग़लत दवाइयाँ, एक्स-रे का रेडियेशन और नशे की लत भी गर्भस्थ शिशु में विकलांगता की कारण हो सकती हैं। इसलिए हमें हर स्तर पर सतर्क रहना चाहिए। विकलांग बच्चों को अपशब्द कहकर हतोत्साहित नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें उत्साहित करना चाहिए।
समारोह के मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि दिव्यांगता के विषय में सोचना केवल ऊँ लोगों के विषय में ही चिंतन करना नहीं है, जो विकलांग हैं, बल्कि स्वयं के बारे में भी सोचना है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी दुर्घटना अथवा किसी बड़े रोग के कारण कभी भी विकलांग हो जा सकता है। इसीलिए कभी भी किसी विकलांग के प्रति हामारे मन में घृणा अथवा हीनता की भावना नहीं चाहिए। यदि हमारे मन में इस तरह की कोई भावना आ रही है तो यह बौद्धिक-विकलांगता है। और कोई विकलांगता उतना हानि कारक नहीं है, जितना कि बौद्धिक-विकलांगता! उन्होंने कहा कि विकलांगों की पेंशन राशि बीस हज़ार प्रतिमाह होनी चाहिए।
सभा की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक-प्रमुख और सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा अनिल सुलभ ने कहा कि बिहार में दिव्यांगजनों के सम्यक् पुनर्वास के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि प्रादेशिक मंत्रिपरिषद में 'दिव्यांगता निवारण और पुनर्वास' के रूप में एक अलग विभाग सृजित किया जाना चाहिए। जब इसके अलग से मंत्री और विभागीय सचिव समेत अन्य अधिकारी होंगे, जैसा कि केंद्र में एवं अनेक प्रांतों में भी है, तभी विकलांगता-पुनर्वास का चुनौती भरा कार्य उचित रूप में संभव हो सकेगा। उन्होंने तीन वर्षों से रिक्त पड़े राज्य निःशक्तता आयुक्त की शीघ्र नियुक्ति का भी आग्रह किया।
बिहार नेत्रहीन परिषद के संस्थापक महासचिव और सुविख्यात नेत्र-दिव्यांग डा नवल किशोर शर्मा ने कहा कि राज्य में दिव्यांगों की चिंता किसी को नही है। दिव्यांगता पेंशन की राशि चार सौ रूपए मात्र है, जिससे कुछ दिन का भोजन भी नहीं हो सकता। १० वर्षों से उच्चशिक्षा में छात्र-वृत्ति नहीं मिल रही है। राज्य में एक भी राजकीय नेत्रहीन बालिका विद्यालय नहीं है। पेंशन की राशि बढ़ाकर कमसेकम पाँच हज़ार की जानी चाहिए।सुप्रसिद्ध समाजसेवी दीपक ठाकुर, डा रूपाली भोवाल, दिव्यांग प्राध्यापक प्रो कपिल मुनि दूबे तथा प्रो मधुमाला कुमारी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर, प्रो संजीत कुमार, डा नवनीत कुमार, डा आदित्य कुमार ओझा, प्रो चंद्रा आभा, प्रो प्रिया कुमारी तथा सूबेदार संजय कुमार समेत बड़ी संख्या में संस्थान के चिकित्सक, शिक्षक, कर्मीगण तथा छात्रगण उपस्थित थे।
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