अब भरोसे में न रहना चाहिए
डॉ रामकृष्ण मिश्र
अब भरोसे में न रहना चाहिएभाव खुलकर साफ कहना चाहिए।।
ठगी के हर दाँव फेके गये हैं।
बैरिय़ों को अब कुचलना चाहिए।।
हो गई खाई बडी नासमझ की।
अंतराल सभी मिटाना चाहिए।।
धुंध की सीमा बड़ी हो रही है।
नया सूरज अब उगाना चाहिए।।
समय की गति रुक नही सकती कभी
हमें ही कूछ तेज चलना चाहिए।।
धूप का बंधन भले कसता रहे।
स्वयं को ही दृढ़ बनाना चाहिए।।
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