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लेखनी का आधार हो

लेखनी का आधार हो

आज फूल लाया था
कुछ तुम्हारे लिए।
पर वो ले गया कोई
और तुम्हारे नाम से।
मुझे पता था की तुम
ऐसा ही बोलोगें मिलने पर।
इसलिए पहले ही मांगा लिये
मैंने उनको तुम्हारे पास से।।


मुझे पता है की तुम
मुझे नही चाहते हो।
पर मेरे गीत कविताओं को
बहुत पसंद करते हो।
हाँ सच में हैरान परेशान हूँ मैं
की कैसे लिख लेते हो तुम।
प्यार मोहब्बत पर इतने
सुंदर गीत और कविता।।


मैं जानता और समझता हूँ तुम्हें।
जो कविताओं की चाह रखती हो।
इसलिए प्यार-मोहब्बत दिखा रहे हो।
पर मेरे लिए तो तुम एक प्रेरणा हो।।


ऐसा नही है प्रिय संजय जी
जो आप हमें समझ रहे हो।
सच में हम तुम्हारे है और
हमेशा ही तुम्हारी रहूँगी।
बस दिलसे विश्वास करो तुम
हम बने ही है संजय के लिए।।


आप प्यार करो या न करो
मेरे को फर्क नही पड़ता।
हाँ पर तेरे से बात करके
मुझे लिखने को मन करता।
इसलिए मेरे लिए तो
आप बहुत ही खास हो।
और मेरी लेखनी का शायद
तुम ही तो आधार हो..
तुम ही तो आधार हो।।


जय जिनेंद्र

संजय जैन "बीना" मुंबई
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