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ऋतु स्त्राव,एक नैसर्गिक वरदान

ऋतु स्त्राव,एक नैसर्गिक वरदान

मनुज जीवन परम आधार,
पर चिंतन दृष्टि लघुता ओर ।
नकारात्मक सामाजिक कारण,
सहमी धुंधली नारीत्व भोर।
कुरीतियों भ्रांति वशीभूत,
चर्चा संवाद सदृश अपमान ।
ऋतु स्त्राव,एक नैसर्गिक वरदान ।।


अधुना शिक्षा विज्ञान युग,
मासिक धर्म विमर्श अहम ।
अपरिहार्य ध्यान अवधि काल,
पोषण आहार खुशियां पैहम ।
अनुभूत तन मन अठखेलियां ,
सृजन शक्ति अनुपमा संधान ।
ऋतु स्त्राव,एक नैसर्गिक वरदान ।।


गृह विद्यालय समाज पटल,
विकसित सकारात्मक सोच ।
गठन संचालन आरोग्य प्रकोष्ठ,
वैचारिकी व्यवहार दर्श लोच ।
अभिवादन जीवन ज्योति उपमा,
सक्रिय भूमिका मंडन मुस्कान ।
ऋतु स्त्राव,एक नैसर्गिक वरदान ।।


स्वस्थ सुखद संतति हित,
समग्र सहयोग पावन बिंदु ।
तज परा परंपराएं धारणाएं,
स्वच्छता उपाय अमिय सिंधु ।
नित नमन विधाता कलाकारी,
प्रयास रक्षित वनिता स्वाभिमान ।
ऋतु स्त्राव,एक नैसर्गिक वरदान ।।


कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)

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