अपेक्षाएं बोझ या स्वीकृति सुकून?
हम सभी जीवन में कुछ न कुछ पाना चाहते हैं, कुछ लक्ष्य होते हैं, कुछ अपेक्षाएं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि ये अपेक्षाएं ही हमें कितना तनाव देती हैं? उपरोक्त पंक्तियां इसी सत्य को उजागर करती हैं। तनाव हमारे मन और शरीर पर एक बोझ की तरह होता है, जो हमें अंदर से खोखला कर देता है।
हमारी अपेक्षाएं और वास्तविकता के बीच का अंतर ही तनाव का मूल कारण है। जितना अधिक हम किसी चीज की अपेक्षा करते हैं, उतना ही निराश होते हैं जब वह हासिल नहीं होती। यह अंतर ही हमारे मन में एक खाई पैदा करता है, जिससे हम तनावग्रस्त हो जाते हैं।
लेकिन क्या हम इस तनाव से मुक्त हो सकते हैं? बिल्कुल! इसका समाधान है - अपेक्षाओं को त्याग देना और जो कुछ है, उसे स्वीकार करना। जब हम किसी चीज की अपेक्षा नहीं करते, तो निराशा का कोई सवाल ही नहीं उठता। हम हर परिस्थिति को शांति से स्वीकार करते हैं और जीवन का आनंद लेने लगते हैं।
स्वीकृति का मतलब यह नहीं है कि हम अपने लक्ष्यों को छोड़ दें। इसका मतलब है कि हम परिणामों के प्रति लचीले बनें। हम मेहनत करते रहें, लेकिन इस विश्वास के साथ कि जो होना है, वह होगा। जब हम परिणामों के प्रति अटूट रहते हैं, तो हम तनाव मुक्त होकर जीवन जी सकते हैं।
याद रखें, जीवन एक यात्रा है, एक गंतव्य नहीं। इस यात्रा का आनंद लें और हर पल को खूबसूरती से जीएं।
अंत में, एक बात याद रखें: आप अकेले नहीं हैं। हम सभी कभी न कभी तनाव का अनुभव करते हैं। लेकिन हम इस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। बस थोड़ा सा प्रयास करने की जरूरत है।
आप कर सकते हैं!
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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