रात की रानी का कमाल
रात अभी आई नही औरद्वार जन्नत के खोल दिये।
जिसे सजाया है वसुंधरा ने
देखो चाँद और सितारों से।
और धरा ने भी बिछा दी है
सफेद चादर मोतीयों की।
और महका के रख दिया है
इस रात को रातरानी ने।।
बहुत शुक्र गुजार हूँ
सौंदर्य की देवी का मैं।
जिसने मेरे मेहबूब को
इतना सुंदर बनाया है।
और उससे मिलने के लिए
बाग जन्नत जैसा बनाया है।
जिसमें मिलकर हम दोनों
प्रेम के सागर में डूब सके।।
मोहब्बत का जिक्र जब भी
इस बाग में किया जायेगा।
तब-तब तुम दोनों को भी
याद किया जायेगा।
जैसे युगों-युगों के बाद भी देखो
याद राधाकृष्ण को किया जाता है।
वैसे ही प्रेमियों के द्वारा तुम्हारी
मोहब्बत को याद किया जायेगा।।
जय जिनेंद्रसंजय जैन "बीना" मुंबई
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