विधवा का दर्द
विधवा की जिंदगी भी कितनी अजीब है ,अनगिनत दुःखों के बहुत ही करीब है।
परेशानियों से वह बहुत त्रस्त है,
समाज के लिए भी वह अभिशप्त है।
जिंदगी अब बोझ - सी लगने लगी है,
जिन्दगी में कष्ट भी बढ़ने लगी है।
लोगों के तिस्कार से है दिल जला,
ना जाने किस दुष्कर्म का है फल मिला।
जीवन में आया अश्रुओं का जलजला ,
गमों का घूंट पी बच्चों को है पाला ।
डूब गया आशियाना, बिखर गई खुशियाँ,
रहा ना जीने का अब कोई आशियाना।
हमसफर क्या बिछुड़े दुनिया उजड़ गई,
जिंदगी अब तो मेरी विरान-सी हो गई।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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