हिन्दी गौरव सम्मान' से विभूषित किए गए डा अनिल सुलभ |
- तीन दिवसीय 'नागालैंड साहित्य महोत्सव' का किया उद्घाटन, लोकार्पित हुई अनेक पुस्तकें ।
दीमापुर, १९ दिसम्बर । बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष और सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा अनिल सुलभ को 'हिन्दी गौरव सम्मान' के विशेष अलंकरण से विभूषित किया गया है। यह सम्मान उन्हें दीमापुर के पद्मपुखरी स्थित राष्ट्रभाषा हिन्दी संस्थान में आयोजित तीन दिवसीय'नागालैंड साहित्य महोत्सव' में महोत्सव के अध्यक्ष और अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के अध्यक्ष सुविख्यात कवि प्रज्ञान-पुरुष पं सुरेश नीरव और संस्थान के निदेशक पी ताकालीला ने प्रदान किया।
गुरुवार की संध्या संपन्न हुए महोत्सव उद्घाटन-समारोह में उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध कवि सुभास चंद्र सैनी के काव्य-संग्रह 'संभवामि युगे-युगे' , उत्तरप्रदेश के कवि डा धर्मेन्द्र सिंह धरम 'मैनपुरिया' के गीत-संग्रह 'अद्भुत है संसार हमारा' , पटना के सुविख्यात कवि प्रो रत्नेश्वर सिंह के काव्य-संग्रह 'कल्पना के पंख', संस्कृत की विदुषी और शायरा अमीना खातून के काव्य-संग्रह 'तस्कीन-ए-रिहाई' तथा कवयित्री अनीता प्रसाद के काव्य-संग्रह 'कविता के ओट से' का लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि डा अनिल सुलभ ने किया।
अपने संबोधन में डा सुलभ ने आयोजकों के प्रति उनके सम्मान और साहित्य महोत्सव के आयोजन के लिए कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा कि सुदूर अहिन्दी भाषी इस प्रदेश में इस साहित्यिक अनुष्ठान का ऐतिहासिक महत्त्व है। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति भावनात्मक लगाव को बल देने वाले इस भव्य महोत्सव से संपूर्ण भारतवर्ष को एक महान संदेश जाएगा। संपूर्ण भारत अब अपनी राष्ट्रभाषा और मातृभाषा के प्रति जागृत हो चुका है। भारत के लोग अब 'एक राष्ट्रभाषा' के महत्त्व और अनिवार्यता को समझने लगे हैं और 'हिन्दी' भारत की 'राष्ट्रभाषा' घोषित हो, इस हेतु एक स्वर भी देने लगे हैं। वे समझ गए हैं कि देश की एक राष्ट्रभाषा होने से ही पूरा भारत भावनात्मक और आत्मीय रूप से जुड़ सकेगा। उन्होंने आशा व्यक्त की कि नागालैंड में हिन्दी के प्रति बढ़ता प्रेम यहाँ की सत्ता पर स्नेहिल दवाब बनाएगा और यहाँ भी सभी विद्यालयों और महाविद्यालयों में हिन्दी की प्राथमिक-स्तर से उच्च-स्तर की शिक्षा प्रदान की जाएगी तथा प्रदेश के काम-काज भी हिन्दी तथा स्थानीय भाषाओं में होंगे। 'अंग्रेज़ी' जो एक विदेशी भाषा है, उसका स्थान हिन्दी और अंगामी जैसी स्थानीय भाषाएँ लें।
आरंभ में नागालैंड की स्थानीय बालाओं ने परंपरागत गीत और नृत्य से अतिथियों का भव्य स्वागत किया। उनके भाव-नृत्य और मधुर संगीत पर अतिथि गण और श्रोता झूमते रहे तथा तुमुल-नाद से कलाकारों का सम्मान बढ़ाया। वरिष्ठ कवयित्री मधु मिश्रा ने सरस्वती-वंदना की और श्रीनगर गढ़वाल के वरिष्ठ कवि विमल बहुगुणा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
उद्घाटन-सत्र के पश्चात सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति की ओर से एक भव्य सर्वभाषा कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें विमल बहुगुणा ने 'गढ़वाली', डा धर्मेन्द्र सिंह धरम ने 'ब्रजभाषा', डा रत्नेश्वर सिंह ने 'भोजपुरी', डा रश्मि कुलश्रेष्ठ ने 'अवधी', श्यामल मजूमदार ने 'बांगला', राशदादा राश, नीरज नैथानी, अजय कुलश्रेष्ठ 'अजेय', अमीना खातून, मधुसूदन थपलियाल, आरपी कपरुवाण आदि कवियों और कवयित्रियों ने लोक-भाषाओं की मुग्धकारी गंध से सुधी श्रोताओं को मद-मस्त कर दिया। अंत में श्रीमती रुपाला ने अपनी मीठीवाणी से सबका धन्यवाद-ज्ञापन कर प्रथम दिवस की कार्यवाही संपन्न की। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि प्रदीप भट्ट, लेमज़ेन इनसौंग, सुमन सैनी, पूजा राज, सुमन कुमार मोदी, रामानन्द ठाकुर, उमा शंकर शास्त्री आदि बड़ी संख्या में विद्वानों और विदुषियों की उपस्थित रही।
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