मन की हार से हार है ,
मन की जीत से जीत ।जीत सफल होएगा ,
मन को बनाओ मीत ।।
मन जब मीत बनेगा ,
मन से निकले प्रीत ।
मन हर्षित हो जाएगा ,
हर्ष के निकलेंगे गीत ।।
मन को मीत बना लो ,
सदा करेगा तेरा हित ।
मन की बात मान लो ,
भला होगा तेरा नित ।।
मान तू सच्चे मन से ,
गर्मी वर्षा या हो शीत ।
होगा छल मन में तेरे ,
मीत होगा रेत भीत ।।
चित्त में न पालोगे तो ,
रिश्ते होंगे स्वयं चीत ।
व्यग्र होगा मन ये तेरा ,
स्वयं जलेंगे तेरे पीत ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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