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हार कर भी हार, हमने कभी मानी नहीं,

हार कर भी हार, हमने कभी मानी नहीं,

दुष्ट दलन की शपथ, कभी टाली नहीं।
सनातन के वीरों को, जगाते चल रहे,
वार जब भी करेंगे, जायेगा ख़ाली नहीं।


राम कृष्ण की हम संतानें, धर्म हित तैयार हैं,
भीष्म द्रोण यहाँ सभी, धर्म पर निस्सार हैं।
है वही अपना जगत मे, धर्म संग जो खड़ा हुआ,
अधर्मी के अन्त हेतु, कृष्ण स्वयं तैयार हैं।


क्या कहा था कृष्ण ने, उस पर विचारें हम जरा,
पाप का भरता घड़ा, कब पापियों से कौन डरा?
सौ ग़लतियों तक क्षमा, जरासंध को बता दिया,
चिन्ता नहीं हमको कोई, धर्मयुद्ध में कौन मरा?

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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