त्याग
माता पिता के सहयोग का परिणाम हूँ मैं,उनके अंश का ही छोटा-सा पहचान हूँ मैं।
मेरे रग-रग में उनका ही लहू दौड़ रहा है,
मेरे हृदय में इनका ही प्यार उमड़ रहा है।
बड़े नाज-नखरों से उन्होंने मुझे पाला है,
खुद भूखे रहकर मुझे निवाला खिलाया है।
सारे कष्टों को सहकर उन्होंने मुझे पढ़ाया है,
माता - पिता के धर्म को बखूबी ही निभाया है।
मेरे हर कष्टों को उन्होंने अपने गले लगाया है,
खुद नंगे रहकर भी मुझको परिधान दिलाया है।
मेरे सुख की खातिर बहुत ही कष्ट उठाया है ,
रात-दिन जागकर मुझे चैन की नींद सुलाया है।
दोनों ने मिलकर मुझ पर अपना प्यार लुटाया है,
त्याग अपने सुखों को सफलता का स्वाद चखाया है।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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