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रूप साकार ढूंढता हूं

रूप साकार ढूंढता हूं 

तू है निराकार मैं आकार ढूंढता हूं।
तू अंतर्यामी रूप साकार ढूंढता हूं। 
रूप साकार ढूंढता हूं 

घट-घट का वासी अगम अविनाशी।
पार ब्रह्म परमेश्वर महादेव कैलाशी। 
दर्शन का हे शंकर आधार ढूंढता हूं।
औघड़ दानी भोले करतार ढूंढता हूं।
रूप साकार ढूंढता हूं 

तेरी जटा में गंगा चंद्र ललाट पे सोहे।
गले में सर्प माला नीलकंठ मन मोहे।
विश्वनाथ वरदानी दातार ढूंढता हूं। 
पार लगा दो नैया पतवार ढूंढता हूं। 
रूप साकार ढूंढता हूं 

भांग धतूरा बाबा भस्म तन पे राजे।
नटराज नृत्य प्यारा डम डमरू बाजे। 
हर हर तेरी भक्ति का भंडार ढूंढता हूं। 
तू अगम अगोचर सुख सार ढूंढता हूं।
रूप साकार ढूंढता हूं 

देवाधिदेव भोला करे नंदी की सवारी। 
दुखों को हर लेते हो शिव त्रिशूलधारी। 
तेरी कृपा शिव शंकर भंडार ढूंढता हूं। 
भोलेनाथ दयानिधि साकार ढूंढता हूं। 
रूप साकार ढूंढता हूं 

रमाकांत सोनी सुदर्शन 
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान 

रचना स्वरचित व मौलिक है
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