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जीवन की ढलती शाम

जीवन की ढलती शाम

जीवन यह बहुमूल्य है ,
जीवन का करो यतन ।
जीवन की ढलती शाम ,
जीवन का है ये पतन ।।
जीवन जो देता हमको ,
वही जीवन ये लेता है ।
जीवन नैया उसीकी है ,
वही तो नाव ये खेता है ।।
वही जीवन का उषा है ,
वही तो है ढलती शाम ।
जीवन लीला कर्मक्षेत्र है ,
सत्कर्म है उसका पैगाम ।।
आस्तिक हों या नास्तिक ,
या क्यों न साॅंप आस्तीन ।
दुःखी सुखी दीन हीन हों ,
एक वही है बजाता बीन ।।
जिसने हमें जीवन दिया है ,
उसका हमपर बड़ा ऋण ।
उसको भी उसी ने भेजा ,
जिससे हम करते हैं घृण ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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