जीवन की ढलती शाम
जीवन यह बहुमूल्य है ,जीवन का करो यतन ।
जीवन की ढलती शाम ,
जीवन का है ये पतन ।।
जीवन जो देता हमको ,
वही जीवन ये लेता है ।
जीवन नैया उसीकी है ,
वही तो नाव ये खेता है ।।
वही जीवन का उषा है ,
वही तो है ढलती शाम ।
जीवन लीला कर्मक्षेत्र है ,
सत्कर्म है उसका पैगाम ।।
आस्तिक हों या नास्तिक ,
या क्यों न साॅंप आस्तीन ।
दुःखी सुखी दीन हीन हों ,
एक वही है बजाता बीन ।।
जिसने हमें जीवन दिया है ,
उसका हमपर बड़ा ऋण ।
उसको भी उसी ने भेजा ,
जिससे हम करते हैं घृण ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com