Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

अंगिका' को भाषा का रूप प्रदान किया परमानंद पाण्डेय ने, राजनीति में साहित्यिक हस्तक्षेप थे डा शंकर दयाल सिंह| दोनों साहित्यिक विभूतियों को साहित्य सम्मेलन ने दी काव्यांजलि ।

अंगिका' को भाषा का रूप प्रदान किया परमानंद पाण्डेय ने, राजनीति में साहित्यिक हस्तक्षेप थे डा शंकर दयाल सिंह| दोनों साहित्यिक विभूतियों को साहित्य सम्मेलन ने दी काव्यांजलि ।

पटना, २७ दिसम्बर। अंगिका भाषा और साहित्य के उद्धारकों में महाकवि परमानंद पाण्डेय का स्थान श्रेष्ठतम है। अंगप्रदेश की इस बोली को पाण्डेय जी ने भाषा का रूप प्रदान किया। इन्हें अंगिका का दधीचि साहित्यकार माना जाता है। दूसरी ओर हिन्दी के यशस्वी साहित्यकार डा शंकर दयाल सिंह राजनीति में एक सुदृढ़ साहित्यिक हस्तक्षेप थे।
यह बातें शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में दोनों महान हिन्दी-सेवियों की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि पाण्डेय जी ने अंगिका का व्याकरण लिखा। 'अंगिका का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन' सात सौ पृष्ठों में लिखा गया उनका महान ग्रंथ है।
डा सुलभ ने कहा कि शंकर दयाल जी अपने समय के अत्यंत लोकप्रिय और ज़िंदादिल साहित्यकार थे। वे उन्मुक्त ठहाकों के लिए जाने जाते थे। उनके पास आते ही लोग अपनी पीड़ा भूल जाते थे। मात्र ३३ वर्ष की आयु में भारत की ५वीं लोक-सभा के सदस्य निर्वाचित हो गए थे। वे, 'राजनीति की तपती धूप में साहित्य की घनी छांव' थे। अपनी ५८ वर्ष की कुल आयु में उन्होंने ३० से अधिक ग्रंथ लिखे तथा इतनी ही पुस्तकों का संपादन भी किया। उनमें 'राजनीति की धूप और साहित्य की छांव' विशेष उल्लेखनीय है। उन्होंने अपने साहित्यिक और स्वतंत्रता-सेनानी पिता कामता प्रसाद सिंह 'काम' द्वारा स्थापित प्रकाशन संस्थान 'पारिजात प्रकाशन' को एक बड़े साहित्यिक-केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित किया। वे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अर्थमंत्री भी रहे।
डा परमानन्द पाण्डेय के साहित्यकार पुत्र ओम् प्रकाश पाण्डेय 'प्रकाश' ने अपने पिता की स्मृतियों को संजोते हुए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की विस्तारपूर्वक चर्चा की और कहा कि पाण्डेय जी संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी, ऊर्दू और अंग्रेज़ी समेत अनेक भाषाओं के निष्णात विद्वान थे। उनके भीतर ऐसी आध्यात्मिक शक्तियाँ थी कि उनका स्पर्श आराम देता था। जब कभी ज्वर से मैं पीड़ित होता था, अपने स्पर्श से वे हमारे रोग हर लेते थे।
सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल भारतीय, प्रो आनन्दमूर्ति, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, वरिष्ठ पत्रकार डा अंजनी राज पाण्डेय तथा सूर्या प्रत्यक्षा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ वरिष्ठ कवि गोपाल भारतीय वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, शुभचंद्र सिन्हा, डा अर्चना त्रिपाठी, ईं अशोक कुमार, पं गणेश झा, जय प्रकाश पुजारी, शंकर शरण आर्य, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, सूबेदार नन्द किशोर साहू आदि कवियों और ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया।सम्मेलन के प्रशासी पदाधिकारी सूबेदार नन्दन कुमार मीत, चंद्रशेखर प्रसाद, रवींद्र कुमार, राजू राज, डौली कुमारी, महेश प्रसाद आदि प्रबुद्धजन समारोह उपस्थित थे।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ