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मदारी का खेल

मदारी का खेल

जय प्रकाश कुवंर
हमलोग बचपन से लेकर अब तक एवं गाँव से लेकर शहर तक मदारी का खेल देखते चले आ रहे हैं। एक मदारी अपने वेश भुषा में लुंगी कुर्ता पहने हुए एवं एक लम्बा झोली अपने कंधे पर लटकाये हुए दो बंदर बंदरिया के साथ डुगडुगी बजाते हुए गाँव अथवा शहर में प्रवेश करके अपना खेल दिखाना शुरू करता है। एक स्थान पर बैठ कर वह डुगडुगी बजाते हुए बंदरों को नचाना शूरू करने के क्रम में वह बंदर बंदरिया से तरह तरह का प्रश्न करता है और वहाँ पर जुटी हुई भीड़ का मनोरंजन करता है। भीड़ बंदर बंदरिया के हरकतों को देखकर बिना कुछ समझे खुब ठहाके मारकर हंसती हैं और इस तरह मदारी द्वारा उनका मनोरंजन किया जाता है। भीड़ हंसती हैं, उनका उन जानवरों द्वारा मनोरंजन होता है, परंतु भीड़ उकताती नहीं है और जब तक मदारी का खेल चलता है, उसे आनंद से देखती है। इस मनोरंजन के खेल में मदारी एक अनपढ़ व्यक्ति है और बंदर बंदरिया जानवर हैं।
आज कल हमलोगों को उस लिक से हटकर अपने घर में ही मदारी का खेल टीवी के सामने बैठकर देखने को मिल रहा है, जो मनोरंजन एवं ज्ञान चर्चा से ज्यादा उबाऊ प्रतीक होता है।यह किसी अनपढ़ तथा जानवर का खेल नहीं है, बल्कि शिक्षित समाज का खेल है।राजनीतिक कोई मुद्दा अथवा सामाजिक तथा धार्मिक मुद्दा देश में रोज रोज कुछ न कुछ देश के किसी न किसी कोने में घटित होते रहता है। टीवी के प्रायः हर चैनल वाले अलग अलग राजनीतिक पार्टियों के कुछ नेताओं को आमंत्रित करके चर्चा के लिए लाते हैं, जिसमें हर धर्म संप्रदाय के नेता होते हैं और कुछ विशेषज्ञ भी होते हैं। अब टीवी एंकर उस घटना तथा विषय पर उनका मंतब्य उनसे थोड़ा थोड़ा समय देकर सबसे पुछते हैं और अपना तथा अपनी पार्टी का एवं धर्म का विचार उनसे जानना चाहते हैं, ताकि देश देखे और जाने। लेकिन इस प्रकरण में इतना शोर शराबा होता है कि मन उकता जाता है। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि विभिन्न दलों और धर्मों के नेता अथवा प्रतिनिधि आपस में हाथापाई करने को उतारू हो गये हैं। मदारी अथवा टीवी एंकर द्वारा उन्हें शांत करना भी बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसा देखकर हम वरिष्ठ नागरिकों को ऐसा लगता है कि अब टीवी देश के समाचार को प्रसारित करने से ज्यादा ऐसा मदारी वाला हरकत करने लगा है और अपने चैनलों का व्यवसाय एवं टी आर पी बढ़ाने के लिए इन विभिन्न दलों एवं धर्मों के नेताओं को आमंत्रित कर जनता के सामने खेल दिखा रहा है।
एक समय था जब अपने नौकरी और काम से फुर्सत मिलने पर देश का दैनिक समाचार जानने के लिए हमलोग टीवी खोलकर बैठकर घंटों आनंद से समाचार आदि देखते थे। उस समय के टीवी एंकर भी कितनी सालिनता एवं मधुर आवाज में समाचार पढ़कर सुनाते थे। जाने कहाँ चला गया वो समय और जमाना। आज टीवी भी वही है, देश दुनिया का समाचार भी पढ़ा जा रहा है। लेकिन अब टीवी खोलते ही चाहे जिस किसी भी चैनल पर जाइए, कर्कश आवाज में सब कुछ सुनने और देखने को मिलता है, लगता है, जैसे झगड़ा हो रहा है अथवा मदारी का खेल हो रहा है। 
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