नया सबेरा
बड़ी मुददत और श्रध्दा सेचाहा है तुम्हें।
दुआओं और अच्छे
कर्मो से पाया है तुम्हें।
तुमने भूलाने का हमें
सोचा भी कैसे प्रिये।
किस्मत की लकीरों से
हमने चुराया है तुम्हें॥
जिसे निभा न सकूँ,
ऐसा वादा में कभी नहीं करता।
मैं बातें भी अपनी
हद में रहकर करता हूँ।
क्योंकि ज्यादा पाने की चाहत भी
मैं कभी नहीं करता॥
हाँ पर दिल में तमन्ना रखता हूँ।
आसमान को छू लेने की…।
लेकिन कभी भी औरों को गिराने का।
कभी भी इरादा नहीं रखता॥
हर जलते दीपक तले अँधेरा होता है।
हर रात के पीछे एक सवेरा होता है।
लोग डर जाते है मुश्किलों को देखकर।
पर मुश्किलों के पीछे नया सवेरा होता है॥
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुम्बई
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