जीवों का होता यह जीवन ,
जीवन की होती है जवानी ।भला बुरा रचता इतिहास ,
भला बुरा रचता है कहानी ।।
कोई लेता गुणों का है खान ,
कोई करता निज मनमानी ।
कोई अपनाता निष्ठा शिष्टता ,
कोई द्वेष क्लेश व बेईमानी ।।
जवानी जीवन सॅंवारने हेतु ,
जवानी स्वयं ही सॅंवर रहा है ।
सागर में वह पानी देखकर ,
डूबते उतराते ही पॅंवर रहा है ।।
कहीं अपनाया सुगम मार्ग ,
कहीं मार्ग वह भटक रहा है ।
चोरी बेईमानी और शोषण ,
पराया धन भी गटक रहा है ।।
कोई बनता राम और कृष्ण ,
कोई रावण बालि हो रहा है ।
कोई अंधों को मार्ग बताता ,
कोई होश निज खो रहा है ।।
जीवन की जवानी है धन्य तू ,
जीवन ही अंधा बना रहा है ।
भला बुरा तुम मार्ग दिखाते ,
भला बुरा धंधा बना रहा है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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