लंगड़े की बैशाखी, बच्चे का खिलौना,
रेल आई -रेल आई, लेकर दौड़ा छोना।सुख की परिभाषा, उस बच्चे से पूछो,
ना खाने को रोटी, ना सोने का बिछोना।
खेलता है फिर भी, रुखी रोटी खाकर,
मांगता नहीं वह, कार या खिलौना।
देखा है हमने, उसको सपने सजाते,
खुले गगन तले, चाहता है वह सोना।
धरती से अम्बर तक, उसकी सीमाएं हैं,
देखता है सबको, रोटी का वह सपना।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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