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धैर्य का दीप

धैर्य का दीप

ऋषि रंजन पाठक

तकलीफों का पहाड़ जब सिर पर टूटता है,
मन का आकाश भी अंधकार से घिरता है।
हर दिशा धुंधली, हर राह अनजानी,
ऐसा लगता है जैसे रुक गई है कहानी।


जब दर्द के सागर में डूबने लगे किनारे,
और आँधियों में उलझ जाएँ सहारे।
जब दिल का हर कोना खाली-सा हो,
और जीवन का संगीत भी गुमनामी में हो।


धैर्य की डोर भी जब टूटने लगे,
हिम्मत के पंख भी जब थकने लगे।
अंतरमन का रोष आंसू बन बह जाए,
तो खुद से संवाद भी रुक जाए।


तब रुककर खुद को थामना जरूरी है,
हर आंसू के पीछे एक कहानी अधूरी है।
तकलीफें तो बस परछाई हैं समय की,
उनमें छुपी उम्मीदों की किरण सुनहरी है।


पर यही तो है जीवन का असली रंग,
हर अंधकार में छिपा होता है प्रकाश का संग।
जब टूटे हिम्मत, तो दिल को समझाओ,
हर रात के बाद नई सुबह लाओ।


अपने भीतर का दीपक जलाए रखो,
हर परिस्थिति में खुद को संभाले रखो।
क्योंकि तकलीफें स्थायी नहीं होती,
इनके पीछे छुपी होती नई संभावनाएं।


अंतरमन का रोना भी एक आवाज है,
जो कहता है, “तुम अब भी खास हो।”
धैर्य और हिम्मत को साथी बनाओ,
हर मुश्किल को मुस्कान से हराओ।


अंतरमन की पुकार को सुनो जरा,
वो कहता है, "तुम अकेले नहीं हो"
अपने ही भीतर वो शक्ति छिपी है,
जो पत्थरों से भी राह गढ़ती रही है।


हर तूफान से लड़ने की ताकत तुम्हारे पास है,
हर गिरावट के बाद उठने का विश्वास है।
तकलीफें भी थक जाएंगी तुम्हें हराने में,बस धैर्य रखो, जीत है तुम्हारे आने में।
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